Tuesday, February 10, 2009

शाम, रात और सुबह

ढलता सूरज उतर आया था गिलास में, जिसे चाय में घोल के पी रहा था वो । जैसे नदी पीया करती थी, रोज़ शाम धीरे-धीरे ।
नदी किनारे घंटों बैठे रहते थे वो, सूरज ढलने के भी बहुत देर बाद तक ।

"गहरी बातें किया करो उल्लू, ऐसी अठन्नी चवन्नी बातें कर के कुछ नहीं होगा तुम्हारा । "
"ये नदी जितनी गहरी ? "
" हाँ गहरी, नदी से भी बहुत ज़्यादा । "
" गहरी बातों में भी डूब के मर पाता होगा कोई ? "

सिखा दिया है दिल्ली ने खोखली, गहरी बातें करना । उसकी याद आने पे महसूस होता है सर दर्द, थकान, जलन, प्यार, लालसा; सब कुछ एक साथ। याद आता है गाँव, पेड़, नदी, इमली, हँसी, रोना, प्यार, साइकिल, चाय... । और भी बहुत कुछ महसूस होता है । और हाँ बहुत ज़ोर से रोने का भी मन करता है कभी कभी ।

"अच्छा बड़े हो के क्या बनोगे तुम ? "
"लेखक बनूँगा, बहुत सारी आधी किताबें लिखूंगा । "
"आधी क्यूँ ?"
"पूरी कहानी मालूम किसे होती है, नाटक करते हैं लोग सब जानने का !"

अब पूरी कहानी जानने की हिम्मत भी कहाँ बची है । कहानी अधूरी थी तो थे सपने, डर, जोश, घबराहट, आशाएं.. । कुछ सपने अभी भी बाकी हैं, जिन्हें वो बड़ा सहेज के रखता है । रोज़ रात को निकालता है एक सपना, और उसके आँचल में सो लेता है चैन से कुछ देर । ताकी हिम्मत रहे सवेरे हकीकत का सामना करने की, कहानी का एक और पन्ना पलटने की ..........

8 comments:

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर.....आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

shama said...

Swagat hai....roz ek ummeed pe apnee katha pooree karo...kadee dar kadee jeevanee badhegi...jaise ki mere blogpe apnee jeewangaatha likh rahee hun, par apne aap badee sajag rehke...satya ko adharstmbh maanke...zaroor aayiyega...badee khushee hogee...

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

itna kuchh bas yun hi nahi banta. narayan narayan

Sanjay Grover said...

chaliye yuNhi hai ti yuNhi sahi.

jj said...

dhanyawad aap sab ka, itna acchha hai nahi jitna aapki tareef isse bana de rahi hai :-)...aur vakai mein sab bas yun hi hai, kabhi kabhi kuch kuch likh leta hun yun hi :)

अभिषेक मिश्र said...

"पूरी कहानी मालूम किसे होती है, नाटक करते हैं लोग सब जानने का !"

Sahi kaha aapne. Acchi shuruaat. Swagat.

Kanupriya said...

have you recently joined some hindi-blogging community? :P
well written, by the way :)

jj said...

no I have not :), and thanks!