आज छतरी बंद किए भीगता रहा बारिश में ......
बहुत देर इंतज़ार भी किया ...
पर माँ डांटने नहीं आई।
****************************************************
पता है आज भी बारिश में उसी खिड़की के पास बैठा करती हूँ ...
और चुप से देखती हूँ बूंदों के खेल ....
चाय भी बनाती हूँ वैसी ही इलायची वाली....
गलती से दो कप ही बन जाती है अक्सर ....
तुम्हारी आदत सी हो चली है ना ।
Tuesday, February 05, 2008
Subscribe to:
Posts (Atom)